| اي دوست تا امانت جان وا گذاشتي |
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بار گران غم به دل ما گذاشتي |
| خاموش شد چو شمع وجودت به دست مرگ |
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آتش به جان جمع سراپا
گذاشتي |
| ميناي دل ز د?رد فراقت به خون نشست |
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خون در دلم چو د?رد به
مينا گذاشتي |
| افروختي چو شمع و چو پروانه سوختي |
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جان را در اين ميانه به
سودا گذاشتي |
| در مكتب تعلم و تعليم جان خويش |
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چون كشتي شكسته به دريا
گذاشتي |
| عشق است و رنج كار معلم تو سالها |
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همت بر اين رياضت والا
گذاشتي |
| صدها چراغ معرفت و مهر و دوستي |
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پيش هزار چشم تمنا گذاشتي |
| با آن صفاي باطن و با آن
غناي طبع |
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خوش دست رد به سينه دنيا
گذاشتي |
| دردا كه گنج دانش و فضل و
كمال را |
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زين خاكدان به عالم بالا
گذاشتي |
| بر موج حادثات گذشتي ز
بحر عشق |
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ما را ميان حادثه تنها گذاشتي |
| درياي زندگي و فريب سراب
را |
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ديدي و پا به ساحل معنا
گذاشتي |
| رفتي و غنچههاي سخن
ناشكفته ماند |
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زين خار غم كه بر دل
گلها گذاشتي |
| در انجمن طنين صدايت هنوز هست |
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چون شد كه سر به دامن
صحرا گذاشتي |
| شايد چو مرگ حل معماي زندگي است |
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آخر قدم به حل معما
گذاشتي |
| گفتي زبان شعر توام در وطن دريغ |
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مهر سكوت بر لب? گويا
گذاشتي |
| ميخواستي امانت حق را ادا كني |
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كاندر حريم رحمت حق پا
گذاشتي |
| از ديده رفتهاي و به دلها
نشستهاي |
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آنجا كه نام نيك ز خود جا
گذاشتي |
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